CHANAKYA NITI - चाण्क्य नीति प्रणम्य शिरसा विष्णुं त्रैलोक्याधिपतिं प्रभुम् । नानाशास्त्रोद्धृतं वक्ष्ये राजनीतिसमुच्चयम् ।।१।। १. तीनो लोको के स्वामी सर्वशक्तिमान भगवान विष्णु को नमन करते हुए मै एक राज्य के लिए नीति शास्त्र के सिद्धांतों को कहता हूँ. मै यह सूत्र अनेक शास्त्रों का आधार ले कर कह रहा हूँ। अधीत्येदं यथाशास्त्रं नरो जानाति सत्तमः । धर्मोपदेशं विख्यातं कार्याऽकार्य शुभाऽशुभम् ।।२।। 2. जो व्यक्ति शास्त्रों के सूत्रों का अभ्यास करके ज्ञान ग्रहण करेगा उसे अत्यंत वैभवशाली कर्तव्य के सिद्धांत ज्ञात होगे। उसे इस बात का पता चलेगा कि किन बातों का अनुशरण करना चाहिए और किनका नहीं। उसे अच्छाई और बुराई का भी ज्ञात होगा और अंततः उसे सर्वोत्तम का भी ज्ञान होगा। तदहं संप्रवक्ष्यामि लोकानां हितकाम्यया । येन विज्ञानमात्रेण सर्वज्ञत्वं प्रपद्यते ।।३।। ३. इसलिए लोगो का भला करने के लिए मै उन बातों को कहूंगा जिनसे लोग सभी चीजों को सही परिपेक्ष्य मे देखेगे। मूर्खशिष्योपदेशेन दुष्टास्त्रीभरणेन च । दुःखितै सम्प्रयोगेण पण्डिताेऽप्यवसीदति ।।४।। ४. एक पंडित भी
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